इज़रायली सेना में इस्लाम और अरबी भाषा की पढ़ाई अब अनिवार्य, खुफिया विभाग के लिए नई दिशा

यरुशलम, 25 जुलाई 2025 — इज़रायल की सेना (आईडीएफ) ने अपने खुफिया विभाग से जुड़े सभी सैनिकों और अधिकारियों के लिए अब इस्लाम धर्म और अरबी भाषा का अध्ययन अनिवार्य कर दिया है। यह कदम हालिया वर्षों में खुफिया जानकारी जुटाने में आई कठिनाइयों के बाद उठाया गया है।

इस बदलाव का आदेश आमान (इज़रायली सैन्य खुफिया निदेशालय) के प्रमुख मेजर जनरल शलोमी बिंदर द्वारा दिया गया है। इसका उद्देश्य है — खुफिया अधिकारियों की सांस्कृतिक समझ और विश्लेषण क्षमता को और अधिक सशक्त बनाना।

खास फोकस: हूती और इराकी बोलियों पर प्रशिक्षण

नई योजना के अंतर्गत सैनिकों को अरबी भाषा के साथ-साथ इस्लामी संस्कृति, परंपराओं और धार्मिक मूल्यों की गहराई से समझ दी जाएगी। इसके अतिरिक्त, ध्यान विशेष रूप से हूती और इराकी बोलियों पर केंद्रित रहेगा, क्योंकि हाल के समय में हूती समूहों की बातचीत को समझने में खुफिया एजेंसियों को कठिनाई हुई है।

एक वरिष्ठ खुफिया अधिकारी ने सेना के रेडियो से बातचीत में कहा, “अब तक हम भाषा, संस्कृति और इस्लाम की समझ में पीछे रह गए थे। हमें इस दिशा में सुधार लाना होगा। हम अपने सैनिकों को अरब गांवों में पले-बढ़े बच्चों जैसा नहीं बना सकते, लेकिन भाषा और संस्कृति के माध्यम से हम उनके अंदर विश्लेषण की गहराई और संवेदनशील दृष्टिकोण विकसित कर सकते हैं।”

स्कूलों में भी लौटेगी अरबी की पढ़ाई

सेना की योजना केवल सैन्य कर्मियों तक सीमित नहीं है। तेलेम नामक विभाग, जो पहले स्कूलों में अरबी और मध्य पूर्वीय अध्ययन को बढ़ावा देता था, उसे फिर से शुरू किया जा रहा है। यह विभाग पहले बजट की कमी के कारण बंद कर दिया गया था, जिसके चलते अरबी पढ़ने वाले छात्रों की संख्या में भारी गिरावट आई थी।

अब, सरकार और सेना मिलकर इस ओर बढ़ रही हैं कि माध्यमिक और उच्च विद्यालयों में अरबी भाषा और संस्कृति का शिक्षण फिर से सक्रिय हो, जिससे आने वाले समय में बेहतर खुफिया अधिकारी और नागरिक तैयार किए जा सकें।

क्यों है यह ज़रूरी?

विशेषज्ञों का मानना है कि केवल तकनीकी दक्षता पर्याप्त नहीं होती, जब तक किसी क्षेत्र की भाषा, धर्म, और संस्कृति की समझ न हो। यह पहल उसी कमी को दूर करने का प्रयास है, जो पिछले समय में महंगी साबित हुई।

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